शुक्रवार, 18 जून 2010

गुरुवार, 30 जुलाई 2009


सौ सवा सौ से ज्यादा चैनल, चौबीस घंटे चलने वाला प्रसारण, रोज अपनी जिन्दगी से कुछ नया सीखने वाले मीडियाकर्मी, और करोड़ों की संख्या में अपने घर पर टीवी के सामने बैठे लोग..... यहीं से शुरू होता है ख़बरों की दुनिया का कारवां। हम भी एक न्यूज चैनल में काम करते हैं, ख़बरों की हमारी ज़िन्दगी में अहम जगह है। हर रोज हम कुछ ऐसी चीजों से रू-ब-रू होते हैं जो ज़हन मे कई सवाल छोड़ जाती है, कुछ के जवाब मिलते है और कुछ सवाल हर रात हमारे जहन में ही सो जाते है । उन्ही के जवाब ढूंढ़ने के लिए शुरू हुआ हमारा ये सफर जहां से आगे बढ़ते हुए हमने मीडिया के कई दिग्गजो को पढ़ा कई मैग्जीन और अख़बारों का सहारा लिया..मगर फिर भी दिल के दरवाजे पर सवाल लगातार दस्तक देते रहे। हर जगह कुछ न कुछ अलग था मगर एक चीज़ कॉमन थी, वो सभी मानते हैं कि मीडिया एक अनिवार्य बुराई है... हम आज भी नहीं समझ सके कि.. बीस हजार करोड़ रुपये का विज्ञापन उद्योग, साठ हजार करोड़ का मनोरंजन उद्योग, दस अरब रूपय से ज्यादा का टीवी उद्योग, वाली मीडिया की इस दुनिया में अच्छाई की कोई जगह नहीं, वो मीडिया जो देश की सरकारों को चलाता-बिठाता, गिराता-बनाता है, वह जो आम आदमी का एजेंडा और जीवनशैली तय करता है, वह जो नई पीढी का माता-पिता और गुरू है, जो आम आदमी की आवाज है और जो समाज की बुराई को हटाने वाला समाज सेवी है वो सिर्फ एक अनिवार्य बुराई है...क्या इसका कोई दूसरा पहलू नहीं है, इस बार जवाब खुद से मिला कि अगर ये एक अनिवार्य बुराई है, तो अनिवार्य अच्छाई भी है ।मीडिया के बिना भारत का चेहरा खूहबसूरत नहीं लग सकता। मगर वहीं दूसरी तरफ पत्रकारिता की आवाज को बुलंद करने वाले दिग्गज ही कहते नज़र आते हैं, ' भईया अब तो बस पैसा कमाना ही हमारा काम रह गया है पत्रकारिता तो बस नाम की करते हैं।' तो बताइए उन्हे क्या करना चाहिए जो आज भी इस क्षेत्र में अपने भविष्य को सवारना चाहते हैं या फिर जिन्होने अभी-अभी अपना करियर शुरू किया है। हम सोचते है इंसान को मारने की वजाय उसके सपनों को मारना ज्यादा दर्द देता है। ऐसे बहुत सारे सवाल हमें दिन रात परेशान करते हैं क्या हम इसकी दूसरी तस्वीर को देखने की कोशिश नहीं कर सकते। परिस्थति में ढ़लने से बेहतर नहीं होगा तस्वीर में कुछ और रंग भरे जाए बस इतना समझने की कोशिश कर ही रहे थे की इसी दौरान पत्रकारिता के एक महान नामी पत्रकार ने एक बहुत ही जानी-मानी न्यूज साईट पर लिखा "गलती हर किसी से होती है पत्रकारों से भी हो जाती है मगर इसका मतलब ये नहीं की हमे मीडिया की सीमा निर्धारित कर देनी चाहिए" उस दिन पहला सवाल सामने आकर आंखे दिखाने लगा कि क्या हम किसी गलत जगह आ गए हैं हमें समझ नहीं आया कि वो किसकी गलती की वकालत कर रहें है उन पत्रकारों की जिनकी एक-एक बात लोगों पर गहराई से असर करती है क्या उनको नहीं पता न्यूज़ चैनल पर चलने वाली एक-एक ख़बर का असर इतना भी हो सकता है कि लोग अपनी जान भी दे देते हैं..मान्यवर ये एक ऐसी जगह है जहां गलतियों की कोई गुंजाईश नहीं हैं..वो कहते है कि आज अगर नज़रें दौड़ाओं तो न्यूज़ रूम में कोई पत्रकार नहीं नज़र आता..यहां तो बस लगता हैं ख़बरों का बाजार और काम करने वाले लोग हैं व्यापारी, जो चंद कागज के टुकड़ों के लिए ख़बरों को बेच देते हैं...इनका ये चेहरा कौन दिखाएगा..और गलती से मीडिया की हस्ती को, किसी मंच पर अपना भाषण देने को मिल जाए तो अंदर की आग को ऐसे उगलेंगे मानो बस इन्हें मौका नहीं मिला, नहीं तो पूरी दुनिया को ठीक कर देते..हमें समझ नहीं आता कि कहने वाले ये क्यों भूल जाते है कि वो भी इन व्यापारियों की जमात में शामिल हैं, आखिर क्यों सब सिर्फ समस्याओं की बात करता है ? हम इन सारी बातों को सिर्फ समझते ही नहीं बल्कि इन्हीं के साथ जीते हैं। हम तो बस इतना जानते है कि किसी भी देश में दो तरह के गद्दार होते हैं पहला-जो खुद अपनी मां को बेचता हैं दूसरा- जो अपनी आंखों के सामने अपनी मां को बिकते देखता हैं। दूसरे वाले ज्यादा ख़तरनाक है क्योंकि वो 'कायर' गद्दार हैं। संसद में विश्वासमत पारित होने के समय सारे नेता अपनी मां को बेच रहे थे और मीडिया अलग-अलग अंदाज में दिखा रहा था। आगे कुछ नहीं कहेंगे आप खुद समझदार हैं। हम मीडिया की अच्छाई या बुराई पर बहस नहीं कर रहे हैं, और कर भी नहीं सकते, अभी तो हमारे सफर की शुरूआत है वो कहते हैं न कि 'थोड़े कच्चे हैं' हम तो आप सबकी मदद चाहते है ताकि इस दुनिया में रहने के बाद भी जिन सवालों के जवाब आज तक नहीं मिले वो शायद मिल जाए हम मीडिया के उन्ही दिग्गजों से जानना चाहते है कि आखिर हम क्या करें..?
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